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Showing posts from May, 2021

BLACK FUNGUS

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ब्लैक फंगस , जिसे म्यूकोर्मिकोसिस के रूप में भी जाना जाता है, एक कवक संक्रमण है जो म्यूकोर्माइसेटर नामक सांचों के समूह के कारण होता है जो पूरे प्राकृतिक वातावरण में पाए जाते हैं। यह अक्सर साइनस, फेफड़े, त्वचा और मस्तिष्क को प्रभावित करता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, यह मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जो अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के लिए दवा ले रहे हैं जो पर्यावरणीय रोगजनकों से लड़ने की उनकी क्षमता को कम करते हैं। इसके लक्षण क्या हैं? इसमें मुख्य रूप से आंखों या नाक के आसपास दर्द और लाली, बुखार, सिरदर्द, खांसी, सांस फूलना, खून की उल्टी, दृष्टि की हानि शामिल है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक अगर आप कहीं जा रहे हैं तो मास्क का इस्तेमाल कर , इससे बचा जा सकता है। पूरी तरह से स्क्रब बाथ करने सहित व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि 'ब्लैक फंगस' कोई नया संक्रमण नहीं है लेकिन कोविड-19 के कारण मामलों की संख्या बढ़ी है। उन्होंने आगे कहा कि संक्रमण के पीछे स्टेरॉयड का दुरुपयोग एक प्...

Bio-Bubble ( जैव सुरक्षित बुलबुला)

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बायो-बबल जिसे हिंदी में जैव सुरक्षित बुलबुला या इको बबल भी कहा जाता है वहीं कई लोग इसे केवल बुलबुला कह कर भी चिन्हित करते हैं। इसका ज्यादा प्रयोग कोविड-19 महामारी के दौरान खेले जाने वाले खेलों में किया गया है। बायो बबल उन खिलाड़ियों के लिए एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने का प्रयास करता है जो बाहर के वातावरण से बिल्कुल भिन्न होता है और खेल प्रतियोगिता के अनुकूल होता है। कहने का तात्पर्य है कि यह खिलाड़ियों को बाहरी दुनिया के वातावरण से पूरी तरह अलग करके, कोरोनावायरस जैसे घातक महामारी से, खिलाड़ियों के बाहरी दुनिया के संपर्क को सीमित कर देता है ताकि जोखिम को कम से कम करके उसे रोका जा सके और खेल प्रतियोगिता को सुचारू रूप से चलाया जा सके। कौन होता है इको बबल के अंदर और उसे क्या पालन करना होता है? इको बबल कहे तो एक नया शब्द है जिसकी ज्यादा बातें खेल क्षेत्र में है। यह बबल एक तरह से क्वॉरेंटाइन जैसा है पर इसके नियम और शर्तें बहुत ज्यादा कठिन हैं। बायो बबल का प्रयोग ऐसा नहीं है केवल खेल क्षेत्र में ही हो , इसका प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में भी किया जा सकता है परंतु यह बहुत ही खर्...

जीन्स के जेबों में गोल-गोल छोटे-छोटे बटन क्यों होते हैं, क्या आप जानते हैं?

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यह बात आपको अचंभित कर सकती है पर बता दें कि जींस का आविष्कार मजदूरों के लिए किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादा काम करने की वजह से मजदूरों के कपड़े अक्सर हट जाया करते थे। साल 1850 तक जीन्स बहुत अपने मजबूती की वजह से मशहूर हो गए थे लेकिन जीन्स में अभी भी एक समस्या थी वह यह कि जींस की जेबें बहुत जल्दी फट जाया करती थी। उस समय जींस का ज्यादातर इस्तेमाल मिलों, फैक्ट्रियों, खदानों में काम करने वाले मजदूरों, द्वारा किया जाता था। ऐसे में उनके द्वारा कड़ी मेहनत और जेबों में टूल्स रखने के चलते या तो जेब फट जाया करते थे या उनकी सिलाई खुल जाया करती थी। इसी के चलते जैकब डेविस नाम के दर्जी ने एक बार जींस में बटन लगा दिया। इससे यह लाभ देखने को मिला की जींस अब मजबूती के साथ साथ सुंदर भी दिखने लगा था। साल 1870 में जैकब दर्जी ने इसे पेटेंट करवाने की कोशिश की, लेकिन उसके पास पेटेंट के लिए लगने वाली बड़ी राशि नहीं थी। इसके बाद उसने लगभग 3 साल बाद लेवी कंपनी के साथ एक समझौता किया और लेवी कंपनी ने इसे अपने नाम पर पेटेंट करवा लिया। आपको बता दें कि इस साल 1880 में यह पेटेंट पब्लिक हो गया और अब इ...

UNO (UNITED NATION ORGANISATION)

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संयुक्त राष्ट्र संघ     संयुुक्त रााष्ट्र संंघ UNO एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1945 को अक्टूबर 24 को द्वितीय विश्वयुद्ध(1939 से 1945, लगभग 7 साल) के समापन के बाद हुई थी। इस युद्ध का समापन जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बम के रूप में हुआ, जिस त्रासदी के निशान आज भी जापान में देखे जा सकते हैं। क्या यह संगठन एकाएक विश्व पटल पर अवतरित हुआ? ऐसा नहीं है कि इस संगठन का निर्माण एकाएक द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हो गया हो और यह संयुक्त राष्ट्र संघ के रूप में उभर आया हो। ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध (1914 से 1918, लगभग 5 साल) के बाद बनाया गया था। युद्ध के परिणामों और उसकी त्रासदी को देखते हुए प्रथम बार अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में किसी संगठन की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसके बाद वर्ष 1919 में  राष्ट्र संघ  बनाने का निर्णय लिया गया पर यह अपने उद्देश्य में पूर्ण नहीं हो सका और द्वितीय विश्वयुद्ध होते ही इसकी महत्वता भी खत्म हो गयी क्योंकि इस संगठन का मुख्य उद्देश्य था कि  इस संगठन का मुख...

जीवन ka सार

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    जीवन अंतड़ियों में जकड़ है, पर मन में खटास है,, एक पल की जिंदगी में, न घर है और न घनश्याम है,, जीने की चाहत है, पर किराए की किल्लत है,, इस जीवन के जीवनी में अब, बस रुखसद होने की रवायत है,, बुझे मन से चला है वो, अब कर्म का झोला लिए,, कि, लालची बना रहा, इस संसार में किसके लिए,, एक पल की जिंदगी में, न घर है और न घनश्याम है,, Photo credit:- Google photo

मानव और प्रकृति

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    Nature छा चुका है घोर अंधेरा, मानवता के दरवाजे पर,, रो रही है पृथ्वी बेचारी, अपने कर्म के विधानों पर,, खो दिया है उसने अपना प्रेम सागर, आज, वर्तमान के लालचियों पर,, बेरंग कर दिया है मानव ने जिसको, एक नए लव के चाहत पर,, Photo credit:- Google photo's

facebook aur profile lock

जिनके प्रोफ़ाइल पर ताला पड़ा हो, उनसे कोई संवाद कैसे कर सकता है? वे संवाद में शामिल भी किस मुँह से होना चाहेंगे?  ताला-जड़ित प्रोफ़ाइल लेकर "मित्र" बनने की इच्छा ज़ाहिर करना अपने आप में हास्यास्पद है। परिचय ताले में रखना है और दोस्ती का हाथ भी बढ़ाना है? ऐसा ही है जैसे किसी दरवाज़े पर दस्तक दें, पर अपने चेहरे को ओट देकर।  यह घूँघट-प्रथा छोड़ो यारो। अगर खुले में — सार्वजनिक मंच पर — आ ही खड़े हुए हो। औरों का पता नहीं, मैं 'दोस्त' बनाने से पहले प्रोफ़ाइल देखता हूँ। अक्सर जिरह में जवाब देने से पहले भी। वैसे भी फ़ेसबुक ने पाँच हज़ार पर गाँठ लगा रखी है। एडजस्ट करने में माकूलियत भी तो हो। कोई ब्लॉक होता है, तब जाकर जगह बनती है। आप मेरी हर पोस्ट पढ़ना भी चाहें और अपने खोल में दुबके भी रहें — यह नहीं चलेगा मितरो।